स्तिर हस्तक - हत्सक का व्याख्यान और कथक के व्याख्यान कथक के प्रारंभिक पाठ्य क्रम के लिए ।
गुरु स्तिर की महत्वता को मुद्राओं द्वारा अपने शिष्य और शिष्याओे को इस पाठ्य क्रम में संझा रहीं हैं । स्तिर का मतलब होता है कि एकाग्रित होकर एक जगह पर स्थिर रहना । ना हिलना, ना खुलना । इस मुद्रा में साँसों का चलन भी संतुलित अन्ताज़ में करना होता है । गुरु ने स्थिर की मुद्रा को संझाते हुए अपनी शिष्य और शिष्याओं को इसकी महत्वपूर्णता और सही तकनीक के बारे में बताया है ।
तत्कार (पैरों का काम) - तीनताल का व्याख्यान ताली और खाली के साथ
गुरु वंदना व्याख्यान क्रम से (पाठ २) | कथक में गुरु वंदना श्लोक का विस्तृत विवरण |
चक्कर लेते समय केंद्रीय धोरी की सही जगह: तकनीक
चाल का प्रदर्शन - संगीत के साथ |
हस्तक अंग संचालन और प्रदर्शन संगीत के साथ | Hastaks Movement Vocabulary